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लेखनी प्रतियोगिता -22-Nov-2021

शीर्षक- कल्पना मेरी


अन्तस् की कोर को सहलाती  कल्पना मेरी,
पाँव न टिकने दे ज़मीं पर मेरे कभी,
हवा संग ले उड़े नभ से क्षितिज़ तक,
कैसी है ये मनोवृति, कैसा ये उद्गार है !

कभी खुली आँखों से जन्नत दिखाए,
बादलों की पर्वत शृंखलाएँ, कैलाश से कदम मिलाए।
कभी मेघ दूत बन बिरहन को सन्देशा पहुँचाए,
जैसे रुई के फाहों पर ये चलना सिखालाए।

जमा दे हथेलियों पर सरसों यकायक,
बना दे असम्भव को सम्भव अनवरत।
जो उड़ न सकूँ तो लगा दे पंख सुनहरे,
प्यासे मृग को मृगतृष्णा ज्यों भरमा दे।

जो मन में हो भक्ति, नयनों में उतार दे शिवाय,
ममता हो दिल में तो, गोद में बैठा हो नन्दलाल।
है वो शक्ति जो अदृश्य को सदृश्य कर दे,
प्रीत-प्यार में राधा- कृष्ण कर दे।

ये तो मन की विस्तृत उड़ान है,
कभी खुशी, कभी डर,कभी पीड़ा,
कभी करुणा तो कभी बस वरदान है,
या यूं समझो निष्प्राण में फूँकती प्राण है।

करती संतुष्ट मन, बुद्धि और प्राण को
रोको मत,टोको मत बहने दो अजस्र इसे
बंदिनी नहीं सृजक है ये, न करो निराश इसे
कोरी कल्पना नहीं बनाओ जीवनाधार इसे।

मधुलिका सिन्हा

मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित

#प्रतियोगिता हेतू

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3 Comments

Swati chourasia

22-Nov-2021 07:50 PM

Very beautiful 👌

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Niraj Pandey

22-Nov-2021 01:16 PM

बहुत ही बेहतरीन

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Radha tevari

22-Nov-2021 02:21 PM

थैंक्स जी,

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